फकीर मोहम्मद घोसी
इंसानियत मिटती जा रही है जहां से
हैवानियत बढ़ती जा रही है हैवानों की पनाह
सेसच्चाई से दूर भागकर,
समझौता कर रहा है आज इंसान गुनाह से।
हर इक मोड़ पर बैठे है
फन फैलाये-फणीधर यत्र-तत्र-सर्वत्र
शरीफों के अरमान उड़ रहे है बनकर भाप
ईमानदारी का नही कर रहा कोई जाप।
आज इंसान के पास भ्रष्टाचार का प्याला है
बेईमानी की हर जगह मधुशाला है
हड़ताल की मधु मे कर्मचारी मतवाला है
गबन, घोटाले, कालाबाजारी का बोलबाला है
विदेशो मे देश का निकल रहा दिवाला है।
इंसानियत की न करता कोई कद्र
न रहा अब कोई अपना
धूमिल होता जा रहा है
भारत को स्वर्ग बनाने का सपना।
इंसानियत के लिए चाहिए
फिर एक स्वर क्रान्ति का
भारत विश्व को तभी दे पाएगा सिद्धान्त शान्ति का
न होगा तेज तभी बिगुल मजहब और जाति-पांति का।
इंसानियत का जब होगा विकास
अमन-शांति का फैलेगा चहूं और प्रकाश
यही है कामना
न किसी के हाथ मे हो जाम
कोई न करे इंसानियत को बदनाम
चहूं ओर होंगे तभी शराफत के फरमान
सफल होंगे तभी `घोसी´ के अरमान।
मंगलवार, 3 फ़रवरी 2009
``इंसानियत´´
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