गुरुवार, 5 फ़रवरी 2009

``देश क्या आजाद है ?´´

सौ मे सत्तर आदमी फिलहाल जब नाशाद है
दिल पर रख कर हाथ, कहिये देश क्या आजाद है?
कोठियो से मुल्क की मयान को मत आकिये,
असली हिन्दुस्तान तो फूटपाथ पर आबाद है?
नेता का उल्टा ताने arthat जो ताने कसना जानता हो वही नेता है। आज की राजनीति अंग्रेजो की फूट डालो और राज करो की नीति से कम नही है। जनतंत्र जनता का, जनता द्वारा, जनता के लिए शासन होता है लेकिन वर्तमान समय मे इसे नेताओ का नेताओ के लिए नेताओ द्वारा किया जाने वाला शासन कहे तो कोई अतिश्योक्ति नही होगी।
आज के नेताओ को जब वोटो की गरज होती है तो गधे को भी बाप बनाने की कहावत को चरितार्थ करते हुए प्रत्येक व्यक्ति के सामने गिड़गिडाते है लेकिन गरज निकल जाने के पश्चात पहचानना भी भूल जाते है।
भारत वर्ष की स्वतंत्रता 60 वर्ष हो रहे है लेकिन आज देश की स्थिति आजादी से पूर्व की स्थिति से भी बदतर है। प्राचीन समय मे ``भारत सोने की चिड़िया´´ कहा जाता था उसका सोना तो अंग्रेजो ने लूट लिया था लेकिन आज के नेतागण तो उस चिड़िया को भी बेच देने को उतारू है। किसी कवि की कल्पना है-
धरा बेच देंगे, गगन बेच देंगे, सुमन बेच देंगे, चमन बेच देंगे
कलम के सिपाही गर सो गये, वतन के मसीहा वतन बेच देंगे।
बापू का सुराज्य लाने का सपना अभी तक साकार नही हुआ तथा इस स्थिति को देखते हुए तो लगता है कि आज के नेता उस सपने को सपना ही रहने देंगे, क्योकि इसी मे उनका हित निहित है। आज की राजनीति जातिवाद, साम्प्रदायिकता, भाषावाद, संकीर्णता, ईष्र्या आदि के घेरे मे घिरी हुई है तथा उस समय तक इसमे लिप्त रहेगी जब तक जनता नेताओं की अंधभक्त बनी रहेगी।
आलू व प्याज जो पुराने समय से ही गरीबो, मजदूरो की रोटी समझी जाती थी आज वो भी उनके लिए दूभर हो गई है। शिक्षा का महत्व दिन प्रतिदिन धटता जा रहा है। बैरोजगारी की लम्बी कतार मे प्रतिवर्ष हजारो व्यक्ति जुड जाते है। क्या आज हम सही arthon मे आजाद हैं ? इस प्रश्न पर हमे गहन विचार करना चाहिए।
आज हम राजनीतिक arthon मे तो आजाद है लेकिन वास्तविकता तो यह है कि आज का सामान्य व्यक्ति अंग्रेजो की गुलामी से भी बदतर जीवन व्यतीत कर रहा है। आज हमारे देश मे किसी भी वस्तु की कमी नही है लेकिन ब्लैक-मैलिंग, जमाखोरी, व कालाबाजारी के कारण सही अथाZें मे किसी की सही पूर्ति नही हो पा रही है।
भारत भूमि पर जहॉं देवता भी जन्म लेने को तरसते थे वहां आज असूर भी आना पसन्द नही करते है। इस प्रकार हरि अनन्त हरि कथा अनन्त की तरह राजनीति के विचारणीय पहलू भी अनन्त है।
क्या पता था कि आजादी के पश्चात देश बेकार हो जाएगा, क्या पता था कि वह नेताओ की काली करतूतो से वह नाशाद हो जायेगा। मिट जाये यदि नेताओ की स्वार्थमयी नीति तो निश्चय ही भारत फिर से आबाद व स्वर्ग तुल्य हो जायेगा।

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