बुधवार, 18 मार्च 2009

मेरी रचनायें नवभारत टाइम्स में देखें

फकीर मोहम्मद घोसी, फालना (राजस्थान) आप गर हमारी ज़िंदगी में आते और बात होती आकर फिर न जाते तो कुछ और बात होती हंसना गर आपकी फितरत में नहीं तो ये और बात है एक बार मुस्कुरा कर भी ...http://navbharattimes.indiatimes.com/valentineshow/4118198.cms30k- Cached- Similar Pages

एक अनसुलझा रहस्य -किस्से-कहानियां ...17 फ़र 2009 ... फकीर मोहम्मद घोसी, राजस्थान वातावरण जब शान्त होता है, तन्हाई होती है तो अमीर का मस्तिष्क अतीत की यादों में खोने लगता है। वही घटना मस्तिष्क पर चलचित्र की भांति चलने ...http://navbharattimes.indiatimes.com/articleshow/4124415.cms52k- Cached- Similar Pages

मां की ममता का मोल-कविता/शायरी-पाठक ...26 फ़र 2009 ... फकीर मोहम्मद घोसी, राजस्थान मां की ममता है बड़ी अनमोल क्षमा, दया, करूणा, उसके शील वह होती धीर, गंभीर, सुशील। वह होती क्षमा का मूल देती है खुशियां मिटाती अवसाद ...http://navbharattimes.indiatimes.com/articleshow/4134367.cms45k- Cached- Similar Pages

राजनीति बनाम राजनेता-कविता/शायरी ...फकीर मोहम्मद घोसी , राजस्थान नीति जिसमें रहता राज राज को जानने वाले होते हैं दगाबाज राजनीति नहीं शरीफों का खेल यह विवाह है बेमेल आम आदमी इसमें फेल संसद भवन नेताओं का ससुराल ...http://navbharattimes.indiatimes.com/articleshow/4141615.cms47k- Cached- Similar Pages

इंसानियत मिटती जा रही है जहां से ...12 फ़र 2009 ... फकीर मोहम्मद घोसी, राजस्थान इंसानियत मिटती जा रही है जहां से हैवानियत बढ़ती जा रही हैवानों की पनाह से सच्चाई से दूर भागकर समझौता कर रहा है इंसान गुनाह से ...http://navbharattimes.indiatimes.com/articleshow/4015375.cms46k- Cached- Similar Pages

यह शहादत कभी नहीं मिटाई जाएगी ...14 जन 2009 ... फकीर मोहम्मद घोसी, राजस्थान इस्लाम की तारीख (इतिहास) शहादत, ईसार, कुर्बानी और मोहब्बत से भरी हुई है। करबला का वाकया न सिर्फ इस्लामी दुनिया के लिए, बल्कि रूए आलम (सारी ...http://navbharattimes.indiatimes.com/articleshow/3978220.cms50k- Cached- Similar Pages

गर भाषा न होती तो क्या होता-कविता ...3 फ़र 2009 ... फकीर मोहम्मद घोसी , राजस्थान न स्कूल होती , न भारी बस्ता न होती हालत हमारी खस्ता गर भाषा न होती शिक्षा होती न संस्कृति होती कलम - किताब न होती कविता होती न काव्य होता ...http://navbharattimes.indiatimes.com/articleshow/3987555.cms48k- Cached- Similar Pages

भगवान, मुझे गर्लफ्रेंड न दे-शरारती SMS ...फकीर मोहम्मद , घोसी , ( राजस्थान ) क्या आपके पास भी ऐसे शरारती , चुटीले SMS हैं , जो आप दूसरों के साथ बांटना चाहते हैं ? आप अपना SMS हमें भेजिए और हम उसे यहां प्रकाशित करेंगे। ...http://navbharattimes.indiatimes.com/articleshow/4020026.cms46k- Cached- Similar Pages


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सोमवार, 23 फ़रवरी 2009

`गर भाषा न होती´ को पांचवा स्थान

कलम का सिपाही प्रतियोगिता में मेरी कविता `गर भाषा न होती´ को पांचवा स्थान प्राप्त हुआ इसके लिए आप सभी का आभार। मैंने पहली बार ही इस तरह की किसी प्रतियोगिता में हिस्सा लिया। आपका सहयोग पाकर बहुत अच्छा लगा। आगे भी आपका स्नेह व आशीर्वाद मिलता रहेगा इसी उम्मीद के साथ। इस तरह की प्रतियोगिताओं के होने से सभी को एक मंच पर आने का मौका मिलता है।


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शनिवार, 21 फ़रवरी 2009

निराली प्रतिभा है - `सूयकांत त्रिपाठी निराला´

मां भारती के मिन्दर में साधनारत होकर अपने तन-मन के प्रत्येक कण को आहूत करके कविता की सोंधी महक को महकाने वाले कलाकार यों तो अनेक हो गुजरे हैं, पर स्वाभिमान की उन्नत चट्टानों पर अडिग रहकर काव्य की फसल को अपने खून-पसीने से तिल-तिल, कण-कण अभिसिंचित करने वाला निराला कलाकार शतािब्दयों तक धरा की मांग और घुटन के बाद ही पैदा हुआ करता है। उस निराली प्रतिभा व व्यक्तित्व वाले कलाकार का नाम है - `सूयकांत त्रिपाठी निराला´।
आधुनिक युग के कवियों में महाप्राण निराला सदा निराले रहे है, उनके अपने ही शब्दो में - `देखते नहीं मेरे पास एक कवि की वाणी, कलाकार के हाथ, पहलवान की छाती और फिलासाफर के पैर है।´ उन्होंने अपने व अपने काव्य के सम्बंध में स्वयं की कह दिया था कि `आज मयूर-व्याल पूंछ से बंधे हुए हैं।´ उनको रूप सौन्दय और विद्रूपता दोनों से समान प्यार रहा है, एक ओर वे घोर अहम्वादी है और दूसरी ओर अपनी उदार मन: संवेदना के कारण पद-दलितों के हिमायती भी है।
इस बारे में नरेन्द शर्मा लिखते है - `वह तोड़ती पत्थर इलाहाबाद के पथ पर´ प्रगतिवादी होने के कारण मार्गी है व दूसरी और पत्थर तोड़-तोड़कर नये युग का मार्ग भी बनाती है।
उनके समग्र व्यक्तित्व का आंकलन करते हुए समीक्षक राजेश शर्मा ने लिखा है `उनमें जहां एक फक्कड की अलमस्ती थी वहीं दूसरी ओर सागर की गहन-गहराई भी। वसंत का मधुहास भी था और पतझड़ का रूदन भी। पावस का करूण स्राव थी और ग्रीष्म का उÌण्ड ताप भी। शिशिर की ठिठुरन भी थी तो शरद की अक्खतडता भी। झरनों का कल निनाद तो था ही, तूफानी नदी का तेज प्रवाह और बफाZनी घाटी का अपने अंतराल में समेटकर सो जाने वाला जमाव भी था। पक्षियों की मुक्त उडान, हरिणों की चंचलता, हाथी की मस्ती, सिंह की गर्जन भरी कूद और कलहंसों की ठूमक भी थी तभी तो उनके कृतित्व में सब गुणों का साक्षात्कार हो पाया है।´
साहित्य व साधना के बारे में निराला का विचार था - `साहित्य मेरे जीवन का उÌेश्य है, जीने का नहीं। यह सच है कि मैं जीता भी अपने साहित्य से हूं किन्तु वो मेरे जीवन का साधन-मात्र नहीं। जो मैं नहीं लिखना चाहता वह चाहे भूखों मर जाऊं न लिखूंगा और जो लिखना चाहता हूं, लाखों रूपयों के बदले में भी उसे न लिखने की बात न सोचूंगा।´ इसीलिए `निराला´ ने कविता के मूल स्वरूप में संवेदना को स्वीकारा है -
मैंने `मैं´ शैली अपनाई,
देखा एक निजी दुखी भाई।
दु:ख की छाया पड़ी हृदय में,
झट उमड़ वेदना आई।।
उन्होंने अपने काव्य में विभिन्न रूपों, आयामों एवं सन्दर्भों में स्वयं को मुखरित किया है। एक ओर जहां `विधवा´, `वह तोड़ती पत्थर´, `दान´, `भिक्षुक´ और `सरोज-स्मृति´ जैसी रचनाएं रचकर के सहज मानवीय करूणा और सहानुभूतियों को स्वरूप प्रदान किया है। वहीं `वन-बेला´, `जूही की कली´ और `अस्ताचल सूर्य´ जैसी मुग्ध स्वच्छंद कविताएं लिखकर उÌाम यौवन से जुड़ी छायावादी, प्रकृति प्रधान, Üाृंगारिकता को भी सजीव-साकार रूप प्रदान किया है।कविता `विधवा´ का प्रारम्भ बहुत ही करूण, सजीव एवं मार्मिक है -
`वह क्रूर काल ताण्डव की स्मृति रेखा सी,
वह टूटे तरू से छूटी लता सी दीन
दलित भारत की विधवा है।´`
सरोज-स्मृति´ में भी कवि की अविरल करूणा अन्दर तक भिगो देती है और महाप्राण निराला का अडिग, महाप्राण व्यक्तित्व जैस खण्ड-खण्ड होकर बून्द-बून्द हो जाना चाहता है -
`दु:ख ही जीवन की कथा रही,
क्या कहै आज, जो नहीं
कही कन्ये! गत कर्मो का अर्पण,
कर, करता मैं तेरा तर्पण।
´सरोज (पुत्री) के तर्पण के बाद कवित कुछ क्रूर, कठोर चोट करता सा प्रगतिशील पथ पर अग्रसर हो जाता है तथा क्रान्तिकारी सा बनता प्रतीत होता है। जहां भी उन्होंने शोषण व्यवस्था पर कलम चलाई वहां प्रतीकों व बिम्बों के माध्यम से पूंजीपतियों पर प्रहार कर घृणा व कठोर व्यंग्य व्यक्त किए है- `अबे ! सुन बे गुलाब
भूल मत, गर पाई खुशबु रंगो आब।
खून चूसा खाद का तूने अशिष्ट,
डाल पर इतरा रहा है कैपिटलिष्ट।´
करूणा, व्यंग्य, आक्रोश के अतिरिक्त सौन्दर्य, प्रेम व Üाृंगार रस का भी खुलकर तथा जमकर वर्णन किया है। `जूही की कली´, `स्वप्न सुन्दरी´ इसके सशक्त उदाहरण है। जूही की कली की आरिम्भ पंक्तियां - `विजन उन वल्लरी पर सोती थी सुहाग भरी
स्नेह-स्वप्न-मग्न, अपल कोमल तनु-पराग-तरूणा
जूही की कली।´
दूसरी तरफ कवि का कई बार अन्त: मन: आतंकित हो, चीत्कार करता है। `राम की शक्ति पूजा´ में राम के माध्यम से अपनी पीडा व्यक्त करते है -
`दिक् जीवन जो पाता ही आया है विरोध
दिक् साधन जिनके लिए सदा ही किया शोध।´
कहीं-कहीं तो कवि निराला बिल्कुल जीवन को निस्सारता की कोटि में ले जाकर खडा कर देता है-
`स्नेह निझZर बह गया
रेत ज्यों तन रह गया।´
जहां महाप्राण निराला का भाव-पक्ष इतना सुदृढ़ है। भाव-प्रवण तथा प्रेरणास्पद है वहीं शिल्प भी अपने बंधन तोड़ता है। नवीन छन्दों में कविता बह उठती है, क्योंकि `मैं´ शैली अपनाते ही, झट वेदना उमड़ आई´ के कारण काव्य के बाह्य परिवेश ने सम्पूर्णता को पा लिया। कंचुकी के बंधन टूट गए क्योंकि `एक नया यौवन उतरता सा, जग को मुक्त प्राण कहने वाले कवि निराला ने घोषणा की कि `जब तक चरण स्वच्छंद नहीं रहते तब तक नुपूर के स्वर मन्द रहते है। फलत: निराला ने पूर्वाग्रह के बंधनों से मुक्त होकर एक स्वच्छन्द काव्य शिल्प हिन्दी संसार को दिया। निराला ने बिम्बों, प्रतीकों के माध्यम से भावों को सजीवता प्रदान की है, उदाहरण के लिए `राम की शक्ति पूजा´ का दृश्य `यह श्री पावन, गृहिणी उदार गिरिवर उरोज, सरि पयोधर ताना बाना तरू, फैला फल निहारती देवी।इस प्रकार स्पष्ट हो जाता है कि दृश्य, अदृश्य सभी प्रकार के बिम्बों के विधान में कविवर निराला निपूण रहे हैं।समग्र आंकलन के आधार पर कहा जा सकता है कि कविवर निराला का काव्य शिल्प उÌाप्त एवं समृद्ध है। उनके व्यक्तित्व के समान ही वैविध्यपूर्ण एवं संघर्षशील है। उन्होंने अपने नये शिल्प विधान के बल पर जहां हिन्दी काव्य में विशेषत: छायावादी काव्य छन्दों की पायल उतारकर भावों की क्षितिज पर मुक्त नर्तन का परिवेश दिया, वहीं काव्य में नाद-सौन्दर्य एवं उच्चतम भाव भूमि को भी प्रतिपादित किया। कविता कामिनी को नवीन Üाृंगार एवं परिवेश तो प्रदान किया ही, उसे भावों की गहनता, भाषायी प्रौढता और बिम्बात्मकता भी प्रदान की। दार्शनिक, सांस्कृतिक क्षमताओं से सार्थक भी बनाया। इनका भाव जगत, शिल्प वैभव, निर्मल आकाश के समान गहरा नीला, व्यापक है, इस व्यापकता ने एक समूचे युगबोध को अपनी छाया से ढक कर रखा है। ऐसे युगकवि महाप्राण निराला को शत-शत वन्दन।


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गुरुवार, 19 फ़रवरी 2009

डिलेवरी केस

डिलेवरी केस
(एक घर मे सामने 50 औरते लाइन मे खड़ी है। घर के बाहर दरवाजे के एक तरफ नेम प्लेट है। जिस पर लिखा है लेड़ी डॉ। शोभा। घर के अन्दर)

डॉ शोभा : (कमरे मे एक कुर्सी पर बैठी है और सामने एक औरत बैठी है।) हां तो तुम प्रत्येक दिन यह गोलियां 2 बार लेना और यह एक बार, ठीक है। 10 दिन बाद फिर चैकअप करवा लेना। (औरत बटुए से 50 रू। निकालती है। डॉ। शोभा को देती है। डॉ। शोभा टेबल के दराज मे डाल देती है)
(डॉ. शोभा घंटी बजाती है)
गंगू बाई : हां मेमसाहब क्या चाहिए था?
डॉ शोभा : (धीरे से) गंगू बाई बाहर जाकर देखो पैसेन्टों की कितनी भीड़ है।
गंगू बाई : ठीक है मेम साहब। गंगू बाई बाहर चली जाती है। थोड़ी देर बाद डॉ शोभा पैसेन्टों को फिर देखने लगती है।
डॉ शोभा : हां क्या हुआ गंगू बाई।
गंगू बाई : 50-60 औरते खड़ी है, मेम साहब।
डॉ शोभा : ठीक है तुम जाओ। (घड़ी की तरफ देखकर) ओह 10:30 बज गये और बाहर इतने पेसेन्ट खड़े है। क्या करूं आज हॉस्पीटल से छुट्टी ले लेती हूं। (एक फोन लगाकर बात करती है) हैलो....हां कौन डॉ. मित्तल.....हां मै कह रही थी कि आज मै हॉस्पीटल नही आ सकती हूं....बिकोज आई एम नॉट फिलिंग वेल टू डे...ओ यस् बाय.....। फोन रख देती है।
डॉ शोभा फिर पेसेन्टो को देखने लगती है। आधे घण्टे बाद फोन की घण्टी बजती है। डॉ. शोभा फोन उठाती है। हैलो डॉ. शोभा स्पीकिंग हियर...हां बोलो नर्स.....क्या एक डिलेवरी केस है.....एमरजेंसी है......हां तुम ऐसा करो उसे एडमिट कर लो....ठीक है मै कल सुबह आकर देख लूंगी। (फोन रख देती है) डॉ। शोभा फिर पेसेन्टो को देखने लगती है। (एक घण्टे बाद एक ग्रामीण व नर्स भागते हुए आते है डॉ शोभा के क्लीनिक रूम मे प्रवेश करते है।)
नर्स : डॉक्टर, डॉक्टर एक अभी एमरजेंसी डिलेवरी केस आया है। उसका ऑपरेशन जरूरी है।
ग्रामीण : (हाथ जोड़ते हुए) मारी बीवी ने बचा लो डॉक्टर साहब, वा तड़पेरी है सा आप जल्दी हालो सा।
डॉ. साहिबा : बट आई एम बिजी हियर। आई हेव नो टाइम। मैने तो ऑलरेडी आज हॉस्पीटल से छुट्टी ले रखी है। (नर्स की तरफ देखते हुए) नर्स तुम उसे एडमिट कर लो और डॉ मित्तल को कहो कि वो ऑपरेशन कर ले।
नर्स : मगर वो कह रहे है कि ये उनके बस की बात नही है सिर्फ उसका ऑपरेशन आप ही कर सकती है।
डॉ. शोभा : ठीक है जब तक मै तैयार होकर आती हूं तुम लोग डिलीवरी केस को हैंडल करने की कोशिश करो (नर्स और ग्रामीण हॉस्पीटल चले जाते है 2 घण्टे बाद डॉ. शोभा के क्लीनिक के सामने की भीड़ समाप्त हो जाती है। तभी फोन की घण्टी आती है।) हैलो....डॉ. शोभा स्पीकींग.....हॉ बोलो मित्तल......(आश्चर्य से) क्या दोनो की डिलेवरी केस मे डैथ हो गई।.....ओ नो मै अभी आ ही रही थी।.....इट इज वेरी बेड न्यूज व्हॉट आई डूं। भगवान की जो इच्छा होती है उसे कोई नही टाल सकता......हां....ओ के बांय। ......डॉ. शोभा गंगू बाई यहां से सब साफ सफाई कर लो। और मेरा खाना लगा दो। आज मै बहुत थक गई हूं। आज बहुत डिलेवरी पैसेंट आये थे। (डॉ. शोभा टेबल के ड्रा को देखती है। टेबल का पूरा ड्रा रूपयों से भरा हुआ था। डॉ. शोभा मुस्कुराते हुए अपने आप से कहती है।) ये तो होना ही था। डिलेवरी केस जो है।


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घायल (एकांकी)

घायल (एकांकी)
(एक कार घनश्याम दास हॉस्पीटल के सामने आकर रूकती है।एक आदमी कार से उतर कर जल्दी दौड़ता हुआ हॉस्पीटल मे प्रवेश करता है)
अतुल: डॉक्टर, डॉक्टर जल्दी स्ट्रेचर लाओ। (हॉस्पीटल के चपरासी तेजी से स्ट्रेचर लेकर भागते हैं और कार से एक आदमी को बाहर निकाला जाता है। पूरा शरीर खून से रंगा हुआ है। जिसको देखने से लगता है कि इसका अभी-अभी कहीं एक्सीडेंट हुआ है? (पीछे से एक आवाज आती है)
डॉ अरूण : ओ नो इट इज एमरजेंसी केस। लगता है इसका तो एक्सीडेंट हुआ है। इसके साथ कौन है? (पीछे से एक आवाज आती है)
अतुल : मै हूं।
डॉ अरूण : तुम कौन हो? यह सब कैसे हुआ?
अतुल : मेरा नाम अतुल सक्सेना है। यह मेरा दोस्त है। इसके स्कूटर का एक्सीडेंट हो गया है।
डॉ अरूण : एक्सीडेंट! तब तो यह पुलिस केस है। (जोर से आवाज लगाते हुए) कंपाउण्डर, जल्दी से पुलिस स्टेशन मे फोन करो और थानेदार साहब को घायल का बयान लेने के लिए यहां बुलाओ।
अतुल : पर डॉक्टर साहब, रमेश को बचा लो, आप इसका इलाज तो शुरू कर दो जब पुलिस आ जाए तो बयान लेते रहना।
डॉ अरूण : सॉरी मिस्टर अतुल, हम रिस्क नही ले सकते।यह पुलिस केस है इसके बयान होंगे उसके बाद हम इसका इलाज करेंगे।
अतुल : लेकिन डॉक्टर साहब, पुलिस को आने मे न जाने कितनी देर हो जाये जब तक कुछ भी हो सकता है।
डॉ अरूण : हम मजबूर है अतुल, पुलिस आकार जब तक एक बार इसे देख ने ले तब तक हम कुछ नही कर सकते। (तभी आवाज आती है डॉक्टर, डॉक्टर बैड नं2 की तबीयत ज्यादा खराब हो रही है, आप जल्दी आइये डॉ. अरूण आवाज की दिशा मे जाता है)
अतुल : रमेश, तुम्हे कुछ नही होगा। अभी पुलिस आयेगी और तुम्हारा बयान लेगी और इलाज शुरू हो जायेगा तुम घबराना मत, तुम्हे कुछ नही होगा। (अतुल, रमेश की स्ट्रेचर के आस-पास चक्कर लगाता है। आधे घण्टे बाद एक पुलिस वेन हॉस्पीटल के सामने आकर रूकती है। एक लम्बा, चौड़ा आदमी वेन से बाहर निकलता है। हाथ मे कागज का बंडल है। साथ मे दो पुलिस वाले है।)
डॉ अरूण : योर मोस्ट वेलकम, सर। (स्ट्रेचर की ओर इशारा करते हुए) ये है वो मरीज सर।
थानेदार : (स्ट्रेचर के पास जाकर) तुम्हारा नाम क्या है, और यह एक्सीडेंट कैसे हुआ?
रमेश : (रूकते-रूकते व रोते हुए) मेरा.....नाम....रमेश....है। मै घर से.....ऑफिस....के लिए...स्कूटर लेकर....निकला था।....रास्ते मे....पीछे से....एक ट्रक ने....मुझे टक्कर.....मारी और.....मै घायल....(आवाज बंद हो जाती है)
थानेदार : हॉं तुम घायल हो गये। (डॉक्टर की तरफ देखते हुए) ठीक है डॉक्टर अरूण तुम इसका इलाज शुरू करो मैने बयान ले लिया है। (इतना कहकर थानेदार हॉस्पीटल से बाहर चला जाता है और चपरासी लोग स्ट्रेचर को जल्दी ऑपरेशन थियेटर मे लेकर जाते है।)
डॉ अरूण : (ऑपरेशन थियेटर के अन्दर घायल की नब्ज देखता है और आश्चर्य से कहता है)। ओ नो ही इज लिव नो मोर!


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कसूर किसका

कसूर किसका


शादी वो लड्डू है जो न खाये वो पछताये और जो खाये वो भी पछताये। इस बात की हामी भरते हुए ज्यादातर इस लड्डू का स्वाद चखते है। इसी पर अमल करते हुए अमीर ने भी शादी की। बात कुछ समय पहले की है। शादी को लेकर हर-एक के मन में उत्साह होता है, एक नई उम्मीद ओर नया खुमार होता है। उसी तरह अमीर का दिल भी बहुत खुश था। ज्यों ज्यों शादी के दिन नजदीक आ रहे थे उसके मन में अजीब तरह का संचार हो रहा था। मन खुशी से झूम रहा था, मगर साथ ही इंतजार के दिन सालों की तरह लम्बे होते जा रहे थे। अमीर ने भी शादी को लेकर अपने मन में कई तरह के ख्याली महल बना रखे थे। वह जिंदगी की इन अनमोल घड़ियों को यादगार बनाना चाहता था, मगर इंसान के सोचने से क्या होता है होता तो हमेशा से वही है जो मंजूरे खुदा होता है। इसी तरह उसकी जिंदगी के इस अजीमुश््शान मौके पर एक अजीब घटना घटी जो उसके दिल पर हमेशा के लिए नक्श हो गई। वक्त ने उस शूल के घाव को भर तो दिया मगर उसका निशान ताजिन्दगी के लिए बन गया।
समय की सुंई को कोई रोक नहीं पाता है, वो अनवरत आगे बढ़ती रहती है उसी तरह आखिर इंतजार की घड़िया खत्म हुई और शादी का दिन आ ही गया। नियत तारीख को बारात ससुराल पहुंची। वहां पहुंचते ही बीवी की ओर से इस्तकबालिया फोन कॉल प्राप्त हुई, उसका दिल ओर खुशी से लबरेज हो गया। सभी तैयारियों व खुशी के आलम में रात गुजरी आखिर इंतजार की काली रात भी विदा हो गई।
जिस दिन का सभी को इंतजार होता है आखिर वह दिन आ पहुंचा, जो उसकी जिंदगी में अनमोल खुशियां लेकर आई। मगर एक बदनुमा दाग उसके दिल पर छोड़ गई, जिसकी याद ताजा होने पर आज भी दिमाग घूमने लगता है।
सुबह मंगनी का प्रोग्राम था यहीं से घटना ने नया मोड ले लिया। मंगनी के लिए औरतों के साथ कुछ लडकियां भी आई थी जिनमें आफरीन भी शामिल थी जो उसकी होने वाली बीवी की खास सहेली होने के साथ-साथ कजन भी थी। आफरीन ने अमीर को मंगनी की अंगूठी पहनाई। गोद भराई में लडृडओं से भरा थाल उसकी गोद में उंडेला अभी तक अमीर का दिल खुशी से बिल्लयों कूद रहा था उसको अचानक विराम लग गया। किसी ने उसकी पीठ पर मजाक में लडडूओं से खाली हुए थाली की दो-तीन दे मारी।
उसका दिल उचट गया कि जब समाज में इस तरह की मजाक पर रोक है तो ऐसा क्यूं हुआ। यहीं से घटना यू टर्न लेती है। उसका चेहरा जो खुशी से गुलाब की तरह खिला हुआ था सूखे पत्ते की तरह मुरझा गया।
इस अनमोल घडी की सारी खुशियां काफूर हो गई। इसके बाद शादी का प्रोग्राम तो उसी तरह चल रहा था जैसे चलना चाहिए था मगर बस कमी इस बात की थी कि उसका मन चाबी से भरे खिलौने की चाबी खत्म होने पर जिस तरह वो निढाल हो जाता है उसी तरह वो भी सभी कामों को अंजाम दे रहा था। सभी काम पूरे होने के बाद विदाई से पहले दुल्हन के घर पर जब उसे विदाई भोज पर बुलाया और ससुराल वालों की ओर से दुल्हे का मुंह मीठा करवाया जा रहा था, तब उसने बदला लेने की सोची। उसके अपने साथ आए मौसी के लडके से पूछा - ßक्या तुम उस लडकी को जानते हो जिसने थाली की पीठ पर मारी थी।Þ वो बोला - ßहां मैं जानता हूं।Þ अमीर ने कहा ßजब वो आए तो मुझे बताना।Þ जब आफरीन मिठाई खिलाने आई तो कहा कि यही है। अमीर ने उसके हाथ से खाने से मना कर दिया। मगर वो एक बार फिर आई तो उसने हाथ को झटक दिया और कहा कि तुमने मेरे थाली की मारी थी, मैंने तुम्हारी मिइाई नहीं खाई हिसाब बराबर। आफरीन जो अभी तक थाली वाली घटना से अनभिक्ष थी उसका जब सभी के सामने अपमान हुआ और वो भी बिना कारण के, वो कुछ नहीं बोली। चुपचाप अंदर जाकर अपनी सहेली (अमीर की बीवी) के पास जाकर बहुत रोई।
जब विदाई की बेला आई। अपनी सहेली को अलविदा करने आफरीन गाडी तक आई। सहेली को बैठाने के बाद उसने अमीर से कहा - ßजीजाजी आपने मेरे हाथ से मिठाई क्यों नहीं खाई, मुझसे ऐसी क्या गलती हुई, मैंनें आपके थाली की नहीं मारी थी। मगर अमीर ने सोचा कि वो झूठ बोल रही है इसलिए उसने इस बार पर गौर नहीं किया। मगर इसके बाद वो वहीं रो पडी। इससे अमीर का दिल उदास हो गया, वो सोचने लगा मैंने यहां आकर किसी का दिल दुखाकर सही नहीं किया। अगर इसने थाली की मारी भी तो मजाक मै, लेकिन अब हो भी क्या सकता था। वो सोचने लगा कि वो यहां आया तो सभी का दिल जीतने के लिए था मगर पूरी तरह कामयाब नहीं हो पाया। आखिर बारात ससुराल से वापस रवाना हुई।
अगले दिन अमीर अपनी बडी बहन के साथ शादी की फोटो एलबम देख रहा था जब आफरीन का फोटो आया तो उसने अपनी बहन को बताया कि कल इसी लडकी ने मेरे थाली की मारी थी इसका बदला मैंने इसके हाथ से मिठाई नहीं खाकर चुका लिया। ये बात जब उसकी बहन ने सुनी तो कहा, ßक्या कहा फिर से कहना, तेरा दिमाग खराब हो गया है। थाली की मारने वाली आफरीन नहीं थी। मैं वहीं पर मौजूद थी।
जब घटना की वास्तविकता से परदा हटा तो फिर एक नया मोड आ गया कि जब मौसी के लड़के ने सही नहीं पहचाना था तो उसे गलत क्यों बताया। अब उसे काटो तो खून नहीं। सोचा कि घटना बार-बार नया मोड क्यों लेती जा रही है। कोई ओर समय होता तो उसे जैसे तैसे सहन कर लेता, मगर ये एक अजीब समय था। एक तो ऐसे ही बीवी से पहली बार मिलन की बेला थी उसमे ऐसे ही दो अजनबी आपस में मिलते है दूसरी तरफ ये घटना घटी भी तो आफरीन के साथ जो उसकी खास थी।
आखिर उसने फिर एक नया रास्ता निकाला एक पेपर पर पूरी घटना लिखकर उससे अपनी बीवी को वाकिफ कराया। पेपर पढकर बीवी भी घटना से रूबरू हुई ओर कहा कि हकीकत में इसमें आपका कसूर नहीं है। शायद खुदा को यही मंजूर था। अगली सुबह अमीर की बीवी ने आफरीन को पूरी घटना से अवगत कराया तब उसे भी पूरी बात पता चली। अमीर ने आफरीन से गलतफहमी में हुई गलती के लिए माफी मांग ली। मगर अमीर सोच रहा था कि इसमें कसूर मौसी के लड़के का था। मगर हकीकत में माने तो यही मंजूरे खुदा था।


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शुक्रवार, 13 फ़रवरी 2009

वक्त की बात करे

वक्त की बात करे

वक्त नही की तन्हाई की बात करे
वक्त नही कि जुदाई की बात करे
व्यर्थ मे न अपना वक्त जाया करे
वक्त कहता है देश के लिए अपना सर्वश्व कुर्बान करें।

वक्त नही की खयालो-ख्वाबों की बात करे
न गुजरे हुए नवाबो की बात करे
देश के अमन व शांति के लिए
केवल व केवल इंसानियत की बात करें

वक्त नही की बहारों की बात करें
वक्त नही की नाव-आ-पतवार की बात करे
वक्त नही कि गुजरे जमाने की बात करे
गर वक्त है तो देश की महंगाई की बात करें

वक्त है देश मे चलती कालाबाजारी की बात करे
वक्त है कि देश की झूठी राजनीति पर वार करे
वक्त है तो रिश्वत की रजाई को बढ़ने से रोककर
वक्त के किमत की बात करे।


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