गुरुवार, 19 फ़रवरी 2009

घायल (एकांकी)

घायल (एकांकी)
(एक कार घनश्याम दास हॉस्पीटल के सामने आकर रूकती है।एक आदमी कार से उतर कर जल्दी दौड़ता हुआ हॉस्पीटल मे प्रवेश करता है)
अतुल: डॉक्टर, डॉक्टर जल्दी स्ट्रेचर लाओ। (हॉस्पीटल के चपरासी तेजी से स्ट्रेचर लेकर भागते हैं और कार से एक आदमी को बाहर निकाला जाता है। पूरा शरीर खून से रंगा हुआ है। जिसको देखने से लगता है कि इसका अभी-अभी कहीं एक्सीडेंट हुआ है? (पीछे से एक आवाज आती है)
डॉ अरूण : ओ नो इट इज एमरजेंसी केस। लगता है इसका तो एक्सीडेंट हुआ है। इसके साथ कौन है? (पीछे से एक आवाज आती है)
अतुल : मै हूं।
डॉ अरूण : तुम कौन हो? यह सब कैसे हुआ?
अतुल : मेरा नाम अतुल सक्सेना है। यह मेरा दोस्त है। इसके स्कूटर का एक्सीडेंट हो गया है।
डॉ अरूण : एक्सीडेंट! तब तो यह पुलिस केस है। (जोर से आवाज लगाते हुए) कंपाउण्डर, जल्दी से पुलिस स्टेशन मे फोन करो और थानेदार साहब को घायल का बयान लेने के लिए यहां बुलाओ।
अतुल : पर डॉक्टर साहब, रमेश को बचा लो, आप इसका इलाज तो शुरू कर दो जब पुलिस आ जाए तो बयान लेते रहना।
डॉ अरूण : सॉरी मिस्टर अतुल, हम रिस्क नही ले सकते।यह पुलिस केस है इसके बयान होंगे उसके बाद हम इसका इलाज करेंगे।
अतुल : लेकिन डॉक्टर साहब, पुलिस को आने मे न जाने कितनी देर हो जाये जब तक कुछ भी हो सकता है।
डॉ अरूण : हम मजबूर है अतुल, पुलिस आकार जब तक एक बार इसे देख ने ले तब तक हम कुछ नही कर सकते। (तभी आवाज आती है डॉक्टर, डॉक्टर बैड नं2 की तबीयत ज्यादा खराब हो रही है, आप जल्दी आइये डॉ. अरूण आवाज की दिशा मे जाता है)
अतुल : रमेश, तुम्हे कुछ नही होगा। अभी पुलिस आयेगी और तुम्हारा बयान लेगी और इलाज शुरू हो जायेगा तुम घबराना मत, तुम्हे कुछ नही होगा। (अतुल, रमेश की स्ट्रेचर के आस-पास चक्कर लगाता है। आधे घण्टे बाद एक पुलिस वेन हॉस्पीटल के सामने आकर रूकती है। एक लम्बा, चौड़ा आदमी वेन से बाहर निकलता है। हाथ मे कागज का बंडल है। साथ मे दो पुलिस वाले है।)
डॉ अरूण : योर मोस्ट वेलकम, सर। (स्ट्रेचर की ओर इशारा करते हुए) ये है वो मरीज सर।
थानेदार : (स्ट्रेचर के पास जाकर) तुम्हारा नाम क्या है, और यह एक्सीडेंट कैसे हुआ?
रमेश : (रूकते-रूकते व रोते हुए) मेरा.....नाम....रमेश....है। मै घर से.....ऑफिस....के लिए...स्कूटर लेकर....निकला था।....रास्ते मे....पीछे से....एक ट्रक ने....मुझे टक्कर.....मारी और.....मै घायल....(आवाज बंद हो जाती है)
थानेदार : हॉं तुम घायल हो गये। (डॉक्टर की तरफ देखते हुए) ठीक है डॉक्टर अरूण तुम इसका इलाज शुरू करो मैने बयान ले लिया है। (इतना कहकर थानेदार हॉस्पीटल से बाहर चला जाता है और चपरासी लोग स्ट्रेचर को जल्दी ऑपरेशन थियेटर मे लेकर जाते है।)
डॉ अरूण : (ऑपरेशन थियेटर के अन्दर घायल की नब्ज देखता है और आश्चर्य से कहता है)। ओ नो ही इज लिव नो मोर!

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Aapk Salah Ke liye Dhnyavad