बुधवार, 11 फ़रवरी 2009

राजनीति नही शरीफों का खेल

राजनीति नही शरीफों का खेल

यह विवाह है बेमेल
आम आदमी इसमे फेल
संसद भवन नेताओ का ससुराल
जिसमें नेता खुशियॉं मानते पॉंच साल
बजाते लोकतंत्र का साज
गिराते जनता पर गाज
नही आते अपनी आदतो से बाज
वो है, राजनेता! राजनीति के ताज

किसी काम के न काज के
बस दुश्मन अनाज के
एक ही राग अलापते
अपना काम निकालते


ये है सफेद हाथी
इनको शराफत नही भाती
इनकी न कोई जाति होती न पांती
बस इन्हे राजनीति ही रास आती
जनता के लगाते महंगाई की चाती
मौज मानते इनके नाती


जनता क्या खाये
इन्हे क्या लेना, चाहे भाड़ मे जाये।
बेईमानी का गीत गाते
राजनीति के मद मे मदमाते
कभी नही करते इंसानियत की बातें

सच्चाई इन्हे नही भाती
फूट-डालो-राज करो की नीति ही
इन्हे बस रास आती


ये है भेड़ की खाल मे छुपे भेड़िए
देश के माल को निगलते है बगैर डकार लिए।


ये कलियुग के रावण
बगैर छाछ के जावण
दगाबाजी के जाल बुनते है
मक्कारी की रूई घुनते है।


इंसानियत का करते खून
आटे मे डालते जरूरत से ज्यादा लून
लोकतंत्र के क्रियाक्रम का बजा रहे है बैंड बाजा।
सब एक ही थाली के चट्टे-बट्टे
इनके गले मे पड़े है राजनीति के पट्टे
विेदेशो मे लगाते देश की नीलामी के सट्टे।


संसद तेल की एक घानी है
जिसमे तेल नही पानी हैै।
बगैर तेल के चिराग जलाते
अनाज, चारा व न जाने क्या-क्या खाते,
अनता को नमक-मिर्च लगाकर आपस मे भिड़ाते
जनता की कमाई पे गुलछर्रे उड़ाते।

1 टिप्पणी:

Aapk Salah Ke liye Dhnyavad