बुधवार, 11 फ़रवरी 2009

प्रशासन व्यवस्था : एक नजर

प्रशासन व्यवस्था : एक नज़र
प्रारूप समिति ने बड़े ताने-बाने बुनकर कई देशो को संविधानो का अध्ययन कर उनकी अच्छाइयो को छांटकर बनाया था हमारे भारत का संविधान 26 नवम्बर 1949 को बनकर तैयार हुआ जो 26 जरनवरी 1950 को लागू हुआ। यह सोच कर बनाया था संविधान कि आनेवाली पीढ़ीयो को किसी प्रकार के कष्ठो का सामना न करना पड़े। भोलाराम जैसे जीव को भी फाइलो मे अटका न रहना पडे। बड़े अरमान लेकर उनहोने निर्माण किया था संविधान का।
भारत में हर वर्ग चाहे वह अमीर हो या गरीब, मजदूर हो या कारखानेदार, पुरूष हो या स्त्री, बालक हो या वृद्ध, साधारण व्यक्ति हो या बड़ा अफसर सभी को उनका बराबरी का हक मिलता रहे व स्वतंत्र भारत के नागरिक अपने-आपको आजाद भारत के स्वतंत्र नागरिक कहलाने का हक जता सके तथा अपने हकूक के प्रति जागरूक रहे। अगर आज की स्थिति से आंखे दो-चार करे तो नजारा कुछ और ही नजर आता है। चोटी से एड़ी तक, बूट से टाई तक, सिर से पाव तक सभ घूसखोर प्रशासन व्यवस्था मे व्याप्त है। यह सोच कर दिल पर पत्थर रखना पड़ता है कि वो क्या सोच रहे होंगे। जिन्होन हमारे देश रूपी कंगुरे की संविधान रूपी नीव रखी होगी। ‘शायद आठ-आठ आंसू रो रहे होंगे।
आज प्रशासन मे इतना भ्रष्टाचार व्याप्त है जिसका वर्णन इस महंगाई के जमाने मे नही किया जा सकता क्योकि उसका वर्णन करते-करते पैन की स्याही खत्म हो जायेगी लेकिन हम उसका नाम मात्र भी वर्णन नही कर पाएंगे। यह तो ठीक हुआ कि कबीरदास ने भक्तिकाल मे जन्म लिया जो यह कहकर चला गया कि सात समंदर की स्याही बनाकर सभी वनों को काटकर उसकी लेखनी बनाएं तथा पूरी पृथ्वी को कागज मान लो फिर भी हरि गुणो का वर्णन नही किया जा सकता। अगर वर्तमान मे होता तो प्रशासन मे व्याप्त भ्रष्टाचार को छोड़कर उसका ध्यान अन्यत्र कही जाता ही नही।
वर्तमान समय के प्रशासन व्यवस्था की सूची (फेहरिसत) पेश नही की जा सकती। लेकिन उसकी आंखे मूंदकर अनदेखी भी नही कर सकते आज छोटे से बाबू को साइन करवाने के बदले मे नजराना देना पड़ता है। सत्य को सिद्ध करवाने के लिए मोटी रकम देनी पड़ती है। जो हर किसी के बस की बात नही इसलिए भारत की अधिकांश विलक्षण प्रतिभाओ के जीवन मे आगे बढ़ने के स्थान पर अवन्नति के काले बादल छा जाते है। जिन प्रतिभाओ को प्रोत्साहन मिलता है वे या तो हर कठिनाई का मुकाबला कर जिंदादिली का परिचय देते हुए दिल मे कुछ कर गुजरने की ठान लेते है वे ही होते है या फिर जिनकी ऊंची पहुंच होती है अथाZत् साधन सम्पंन वर्ग से।
प्रशासनिक कार्यालयो के लोग घूसखोरी मे लिप्त है। आजादी के पूर्व जो भारत सोने की चिड़ियां कहलाता था वो आज आजादी के 6 दशक बाद मिट्टी की चिड़िया कहलवाने के योग्य भी नही रहा। अत: प्रशासन व्यवस्था मे सुधार हेतु कारगर कदम न उठाये गये तो मध्यम वर्ग व निम्न वर्ग का जीवन यापन करना भी दूभर हो जायेगा तथा उसका परिणाम क्या होगा यह तो भविष्य ही बतायेगा लेकिन इतना अवश्य कहा जा सकता है कि वो संकेत तूफान के पहले की शांति का भी हो सकता है।

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