जिसको समझा था अपना
उसने ही किया चकनाचूर सपना
हमने जिसे न जाना कभी पराया
उसने ही हमको गिराया
हुई हमसे बड़ी भूल
जो पत्थर को समझा फूल
हमारे अपनो मे उजाडे घोसले
गैरो मे कहॉं थे इतने हौसले
हमारे अरमानो को किया पस्त
हमारे ख्वाबो के सूरज को किया अस्त
चाहते थे जिसको सदैव साथ
उसी ने खींचा दूर अपना हाथ
मझघार मे छोड़ी पतवार
हम उन पर गुजरे नागवार
हम शायद गलत गाड़ी मे हुए सवार
हमे उतारा राह मे समझकर भार
आगे क्या करूंं बयां राज
गिरेगी हर तरफ से हम पर गाज
मधुर सपने लेकर
नही करेगा कोई नए आयाम का आगाज
हमको जिस पर था नाज
वही निकला दगाबाज
गुरुवार, 5 फ़रवरी 2009
``अपनो का कमाल´´
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Aapk Salah Ke liye Dhnyavad