गुरुवार, 5 फ़रवरी 2009

``गर भाषा न होती´´

न स्कूल होती, न भारी बस्ता
न होती हालत खस्ता
गर भाषा न होती

शिक्षा होती न संस्कृति होती
कलम-किताब न होती
कविता होती न काव्य होता,
अनपढ़ शिक्षित मे दीवार न होती
गर भाषा न होती

विज्ञान न टेक्नोलॉजी होती
न दुनिया पर विनाश की काली छाया होती,
मोटर, जहाज न रेल होती
और न कैदियो के लिए जेल होती
बस जिसकी लाठी उसकी भैंस होती।
गर भाषा न होती

कोई अपना होता न पराया
गाड़ी होती न लगता किराया
जाति न पांति होती
न दुनिया की मारा-मारी होती
गर भाषा न होती

क्रिकेट का बैट होता
न फुटबाल की बॉल होती
न कुश्ती मे घोती खुलती
गर भाषा न होती

मंडे की ड्यूटी न सण्डे की छुट्टी होती
न बच्चे के लिए जन्म-घुट्टी होती
चाय होती न कॉफी बनती
और न खीर-पूरी हमारे पांति आती
न हमे खाने को मिलती मिठाई
न हम जान-पाते कैसी होती है खटाई।
गर भाषा न होती

न कागज होता न पैन होती
न गैस होती न जलते-चूल्हे
बाग होता न लगते झूले
और न हम समाते फूले।
गर भाषा न होती

न काम होता न देर होती
न तोते की टेर होती
और न मुन्ने की नानी के हाथो खेर होती
गर भाषा न होती

न दिया होता न जलती बाती
न काम करता खाती
न लता मंगेश्कर गाती।
गर भाषा न होती

दाम होता न दमड़ी होती
हर किसी को पेट की पड़ी होती
कोई किसी के लिए क्यू रोता ?
किसान-अनाज क्यू बोता ?
गर भाषा न होती

दादा होता न पोती रोती
न फ्लेट होता न हवेली होती
बस घरती की फर्श
और आसमान की छत होती।
गर भाषा न होती

न दिल्ली होती न देर होती
न पपीहे की टेर होती
जाति होती न पांति होती
न झूठी आरक्षण की राजनीति होती
गर भाषा न होती

मजहब होता न मजहर होता
न सामप्रदायिकता का बोलबाला होता
न भाई-भाई लड़ते आपस में
न खून-खराबा होता
गर भाषा न होती

जैक होता न चैक की जरूरत पड़ती
गुलाम होते न बेड़िया कम पड़ती
रिश्वत मे न भरे हुए बैग देने पड़ते
न कालाबाजारी के आलू सड़ते
गर भाषा न होती

अंघा कानून होता
न उसको सच करने के लिए झूठा वकील
डॉक्टर होता न देनी पड़ती फीस
न ही हम खरीदते पेंट पीस
गर भाषा न होती

दगाबाजी की शतरंज जमती
न भ्रष्टाचार की चाले चलती
न नेता रूपी मोहरे होते
न उनके बंगलो पे सैनिको के पहरे होते
गर भाषा न होती

राजनीति होती न जनता मे फूट के बीज बोती
और न जनता यूं आंठ-आंठ आसूं रोती
न पोथी बंचती न पंचाग काम आता
गर भाषा न होती

कसम से देश होता न भेष होता
न देशवासी होते, हम न जाने कहाँ ?
अपनी -अपनी कुटिया मे खर्राटे ले रहे होते ?
गर भाषा न होती

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