फकीर मोहम्मद घोसी
वसंत ऋतु के आते ही खेतों में सरसो फूलती है, उसके पीले फूलों की लम्बी और गहरी पंक्तियों को देखकर ऐसा लगता है, मानो चारो ओर स्वर्ण बिखर रहा है, खेतों पर मंडराने वाले पक्षियों को देखकर ऐसा लगता है, मानो द्विजगण सोने के थालों में भोजन कर रहे है।
बसंत पंचमी के दो अन्य प्रसिद्ध नाम है वसंतोत्सव अथवा होलीकोत्सव तथा सरस्वती पूजन का पर्व। बंगाल में यह त्योहार मुख्यत: सरस्वती पूजन के पर्व के रूप में मनाया जाता है और सरस्वती देवी की सवारी अथवा झांकी को गाजे-बाजे के साथ शोभा यात्रा के रूप में निकालते हैं।
वसंतोत्सव के रूप में इस त्यौहार का सम्बन्ध लोक के साथ बहुत गहरा है, कहते है कि श्री राम के पूर्वजों के समय से यह त्यौहार प्रचलित है। विजय प्राप्ति की खुशी में इस त्यौहार का मनाना आरम्भ हुआ था। वसंत पंचमी के ठीक चालीसवें दिन फाल्गुन सुदी पूिर्णमा को होलिका-दहन होता है। यह त्यौहार तब तक यानी पूरे चालीस दिनों तक मनाया जाता है। अनेक काव्य ग्रन्थों में चालीस दिनों तक मनाए जाने वाले होलीकोत्सव का वर्णन मिलता है। मथुरा में स्थित द्वारिकाधीश तथा श्रीकृष्ण के मिन्दरों में वसंत पंचमी से ही होली प्रारम्भ हो जाती है, ठाकुर जी गुलाल की होली खेलना आरम्भ कर देते हैं।
वसंत पंचमी से लगभग तीन सप्ताह पहले मकर की सक्रान्ति हो चुकी होती है अथाZत सूर्य दक्षिणायन हो जाता है। इससे मौसम में गमीZ का दौर शुरू हो जाता है और कडकड़ाती ठण्ड से राहत की संास महसूस होने लगती है। इसी उल्लास को व्यक्त करने के लिए लोग वसंती रंग के वस्त्र धारण कर लेते है, लोक और प्रकृति में सर्वत्र वसंती रंग की छटा वातावरण में मादकता प्रदान कर देता है।
वसंत ऋतु के आते ही खेतों में सरसो फूलती है, उसके पीले फूलों की लम्बी और गहरी पंक्तियों को देखकर ऐसा लगता है, मानो चारो ओर स्वर्ण बिखर रहा है, खेतों पर मंडराने वाले पक्षियों को देखकर ऐसा लगता है, मानो द्विजगण सोने के थालों में भोजन कर रहे है।
बसंत पंचमी के दो अन्य प्रसिद्ध नाम है वसंतोत्सव अथवा होलीकोत्सव तथा सरस्वती पूजन का पर्व। बंगाल में यह त्योहार मुख्यत: सरस्वती पूजन के पर्व के रूप में मनाया जाता है और सरस्वती देवी की सवारी अथवा झांकी को गाजे-बाजे के साथ शोभा यात्रा के रूप में निकालते हैं।
वसंतोत्सव के रूप में इस त्यौहार का सम्बन्ध लोक के साथ बहुत गहरा है, कहते है कि श्री राम के पूर्वजों के समय से यह त्यौहार प्रचलित है। विजय प्राप्ति की खुशी में इस त्यौहार का मनाना आरम्भ हुआ था। वसंत पंचमी के ठीक चालीसवें दिन फाल्गुन सुदी पूिर्णमा को होलिका-दहन होता है। यह त्यौहार तब तक यानी पूरे चालीस दिनों तक मनाया जाता है। अनेक काव्य ग्रन्थों में चालीस दिनों तक मनाए जाने वाले होलीकोत्सव का वर्णन मिलता है। मथुरा में स्थित द्वारिकाधीश तथा श्रीकृष्ण के मिन्दरों में वसंत पंचमी से ही होली प्रारम्भ हो जाती है, ठाकुर जी गुलाल की होली खेलना आरम्भ कर देते हैं।
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