सोमवार, 9 फ़रवरी 2009

वर्तमान का सत्य

वर्तमान का सत्य

कवियों ने बेच दिया अपनी कलम को,
लेखकों ने लूट ली लेखनी की लाज को,
परिवर्तन की पीड़ा ले के पापी बने पत्रकार,
लोग यहां खुजा रहे है अपनी-अपनी खाज को।


नेताओ की गंदी राजनीति के कारण आज सारा वातावरण दूषित हो चुका है, इससे कोई अछूता नही रहा है। नेता राजसी जीवन जीते है, उनको जनता के दुख-दर्द से कोई सरोकार नही। अत: आज के नेताओ को यदि जन-सेवक के स्थान पर स्वयं-सेवक कहे तो इसमे लेश मात्र भी असत्य की मिलावट नही है।
आज के कवि वृन्द नेताओ के चंगुल से नही बचे है। लेखक गण भी अपनी लाज को नही बचा पाये है। आज के पत्रकारो मे भी परिवर्तन आ रहा है। सभी अपने नैतिक कत्तZव्यों को भूल कर स्वार्थ सिद्धि मे लगे हुए है, नेताओं की नीतियों का अनुसरण कर रहे है। ऐसे समय मे इस देश की खुदा ही ख्ौर करे, अर्थात यहां का राम ही रखवाला है।

गेंहू के साथ घून भी पीसता है, यानि आज के नेता हमारे प्राचीन आदशZ नेताओ के नाम को भी लजा रहे है। इनसे इनकी तुलना करने पर जमीन-आसमान का फर्क नजर आता हैं

घटं भिंघात् पटं छिन्ध्यात कुर्यात रास भरोहणम्
येन-केन प्रकारेण प्रसिद्ध पुरूषो भवेत्।


अर्थात आज के नेता प्रसिद्धि (कुर्सी) प्राप्त करने के लिए कुछ भी असम्भव को सम्भव करने के लिए तैयार हो जाते है। वर्तमान समय मे संसद भवन को मंत्रियों की ससुराल कहे तो अतिश्योक्ति नही होगी।

`जन सेवक´ ही जब स्वयं-सेवक बन गये तो स्वयं-सेवक तो जन-सेवक बनने से रहे। नमक हलाल ही जब नमक हराम हो गये तो जनता किस पर विश्वास करे? रक्षक ही भक्षक बन रहे हो तो किसे अपना माने, किसे जन सेवक जाने? यह तय करना दुष्कर कार्य हो गया है।

मंत्री से लेकर संतरी तक सभी घूसखोरी मे लिप्त है। अधिकारी अपनी ऊंची पहुंच के कारण देश के माल को बिना चबाए ही निगल जाते है। देश की चिन्ता किसी को नही है। वृक्षारोपण, साक्षरता, गरीबी, और मानवता आजादी के बाद सिर्फ नारे मात्र रह गये है। भारत वर्ष गोरे- अंग्रेजो से आजाद हुआ तो काले- अंग्रेजो ने फिर देश को गुलाम बना लिया। सही अथाZे मे आज हम आजाद नही है।

अगर हम वर्तमान के सत्य से अवगत होना चाहते है तो हमे इन प्रश्नो पर गहन चिंतन मनन करना चाहिए।

चाणक्य का देश आज अशिक्षा का शिकार क्यो?

कृषिप्रधान देश का किसान उदास क्यो?

वर्तमान् की राजनीति के बारे मे यूं कहा गया है-

रिश्ते आज रोते है अपना बोझ ढोते है
रिश्वत की रजाई पे लाखों यहां सोते है।

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