गुरुवार, 5 फ़रवरी 2009

जिंदा जन्नत है जमीं पर

मां की ममता
है बड़ी अनमोल
क्षमा, दया, करूणा, उसके शील
वह होती घीर, गंभीर, सुशील।

मॉं का न होता कोई कुल
वह होती क्षमा, का मूल
देती है खुशियॉं
मिटाती अवसाद
मॉं ही पूजा है
उसके जैसा जहॉं मे न कोई दूजा है।

वह है अनमोल रतन
खिलाती अपने आंसूओ से चमन
जिंदा जन्नत है
जमीं पर।

दूर करती रात काली अमां
रोशनी पाता उसी से सारा जमां
मॉं के योग्य नही कोई उपमा
वह है निरूपमा।

मॉं जिन्दा मूरत है भगवान की
त्याग, तप का पर्याय
दर्द की दीवार है
कैसे कोई बराबरी करे उसके बलिदान की।

नही चुका सकता कोई दाम
उसके अनमोल एहसान का
मॉं की ममता का मोल
नही कोई सकता तराजू से तोल।

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