बहुत हो चुका अंधेरा
अब मशाल जलनी चाहिए।
बहुत बह चुका नफरत का नीर
अब प्रेम की धारा बहनी चाहिए।
बहुत सही जुल्म की आंधी
अब इंसानियत की मधु-वात चलनी चाहिए।
बहुत सह लिए अवरोध
अब हिमालय से गंगा निकलनी चाहिए।
बहुत पढ़ लिया इतिहास
अब वतन की चाल बदलनी चाहिए।
बहुत गा लिए प्रेम के गीत
अब सिन्धु राग अलापना चाहिए।
गुरुवार, 5 फ़रवरी 2009
मशाल जलनी चाहिए
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Aapk Salah Ke liye Dhnyavad